Tuesday 30 July 2013

हाल-ए-दिल

बैठी है रूठकर वो इस कदर,
के जैसे कोई मनाने वाला ही नहीं
आँखों में उसकी ऐसा नशा,
के जैसे शराब में भी नहीं...!

रूखसार उसके ऐसे गुलाबी,
के जैसे हो कली गुलाब की
लब उसके ऐसे छलकाए ज़ाम,
के न हो कोई मयकदे की महफिले-आम

कैसे करूँ  बयां...!
मेरा हाल-ए-दिल,
उस ज़ालिम से "ऐ जिया"
जो बैठी है रूठकर,
इस कदर...

                                -केशव प्रधान "जिया"

Tuesday 23 July 2013

ओ मेरे माही...

जाने क्यूँ रूठा है आज,
मुझसे मेरा माही
क्या खता हो गई आज,
मुझसे कोई
जो बिन बोले ही,
सब बयां कर रहा है
मेरा माही...

के गर ख़ता हो गई मुझसे कोई,
तो माफ़ कर देना
ओ मेरे माही !
के तेरे बिन अब कुछ नहीं,
सब कुछ अब तू ही है
मेरे माही...

बिन किए तुझसे बातें,
दिल मेरा अब लगता नहीं
जाने कौन सी खता हो गई,
जो रूठा है अब तक मुझसे
मेरे माही...

आँखों से मेरी अब,
बह रही है अश्कों की धारा
दिल में उमड़ पड़ा अब,
ग़मों का तूफ़ान सारा
अब भी न माना तो,
जाने क्या कर जाऊँगा
आज की रात मैं,
के कल का सूरज न देख पाऊँगा
मेरे माही...

मन में उठ रहे हैं सवाल कई,
जबाब तू कोई देता नहीं...
आँखों में मेरी अब,
छा रही है अँधियारी
दिल के कोने-कोने से,
आवाज़ यही है आ रही
मेरे माही...

रह-रह कर मुझको,
याद तुम्हारी आ रही
जीने की भी कोई राह नहीं,
मंज़िल की भी कोई चाह नहीं
तू ही तो था मेरा किनारा,
जीना नहीं मुझे दोबारा
बिन तेरे अब,
ओ मेरे माही...!

                                     -केशव प्रधान "जिया"